गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है। इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेश । वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी है और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है।
आदि शंकराचार्य जी ने गणेश जी के सार का बहुत ही सुंदरता से गणेश स्तोत्र में विवरण दिया है। हालांकि, गणेश जी की पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरुप वास्तव में उस निराकार, परब्रह्म रूप को प्रकट करता है।
अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं
निरानन्दमानन्द अद्वेतापूर्णम्।
परं निर्गुणं निर्विशेषं निरिहं परब्रह्म रूपं गणेशं भजेम।।
अर्थात, गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश जी वही ऊर्जा हैं जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है। भगवान गणेश जी के जन्म की कहानी आप सभी को पता है इसलिए उस पर चर्चा नहीं करेंगे। आज गणेश जी का जन्म गणेश जी का स्वरूप इस पर तात्विक विवेचन करेंगे।
आप सबको ज्ञात ही है कि गणेश का जन्म पार्वती जी के शरीर के मैल से हुआ है। अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि पार्वती जी के शरीर पर मैल क्यों था?
पार्वती प्रसन्न ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनके मैले होने का अर्थ है कि जब कोई भी उत्सव राजसिक हो जाता है, उसमें आसक्ति हो जाती है तब वह आपको केन्द्र से हिला देती है। मैल अज्ञान का प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं। अज्ञान के मल से बना हुआ निर्विवाद रूप से अज्ञानी ही होगा जहां अज्ञान होगा वहां अहंकार होगा अशांति होगी और अहंकार और अशांति क्रोध में ही परिणित होगी।
भगवान शिव, जो परम ज्ञान और शान्ति के प्रतीक हैं, ऐसे कल्याणकारी शिव अज्ञान से जन्मे क्रोध से वशीभूत उस मिट्टी के पुतले के सिर को धड़ से अलग कर देते हैं। गणेश भले ही उनके स्वयं का बेटा क्यों ना हो उसे नष्ट होना ही पड़ता है क्योंकि वह अज्ञान रूपी मल से उत्पन्न हुआ है। जैसे सूर्य रूपी ज्ञान के उदय होने पर अज्ञान रूपी अंधकार बिना किसी प्रयास के नष्ट हो जाता है। शिव कल्याणकारी हैं इसीलिए अज्ञान को नष्ट कर ज्ञान की स्थापना हेतु मिट्टी के पुतले को भी प्रथम पूज्य ईश्वर के रूप में स्थापित कर देते हैं यही शिव का सत्य संकल्प है।
अब एक और प्रश्न खड़ा होता है कि भगवान शिव तो अंतर्यामी है गणेश तो सर्वव्यापी है फिर दोनों ने एक दूसरे को क्यों नहीं पहचाना । अज्ञान से वशीभूत क्रोध उत्पन्न होता है तो वह स्वयं ही नहीं दूसरों के भी सोचने समझने की शक्ति को नष्ट कर देता है फिर वह ईश्वर ही क्यों ना हो। यहां हम यह घटना हुई या नहीं हुई वास्तव में ऐसा हुआ या नहीं हुआ इस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं । गणेश जन्म एवं स्वरूप के प्रतीकात्मक रूप का तात्विक रूप का चिंतन कर रहे हैं।
भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों? तो जब गणेशजी ने भगवान शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अज्ञान, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान को नहीं पहचानता, तब ज्ञान को अज्ञान से जीतना ही चाहिए। इसी बात को दर्शाने के लिए शिवजी ने गणेशजी के सिर को काट दिया था। हाथी ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति, दोनों का ही मिलाजुला संतुलित रूप का प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं। वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है। इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये गुण ले लेते हैं। हमारा उपास्य जिन गुणों से परिपूर्ण होता है जब हम उनकी आराधना करते हैं तो उनके सारे के सारे गुण हमारे अंदर भले ही विकसित ना हो पाए लेकिन कुछ गुण तो अपने आप विकसित हो जाते हैं। और यही गुण हमारे जीवन को सुखकर कल्याणकारी बनाते हैं
गणेशजी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार्यता को दर्शाता है। गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है, उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेशजी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता।
वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका भी अर्थ है। वे अपने एक हाथ में अंकुश लिए हुए हैं, जिसका अर्थ है जागृत होना और एक हाथ में पाश लिए हुए हैं जिसका अर्थ है नियंत्रण। जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है। गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान, भला क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है! फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।
भगवान गणपति का बड़ा माथा
भगवान गणेश का मस्तक बड़ा है। इसका मतलब होता है कि बड़े मस्तक वाला व्यक्ति काफी बुद्धिमान होता है। वह अपने बुद्धि बल से बड़ी से बड़ी समस्याओं का अंत कर सकता है। गणेशजी का बड़ा मस्तक यह भी बताता है कि इंसान को अपनी सोच को हमेशा बड़ा रखना चाहिए, तभी वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। छोटी सोच इंसान को आगे बढ़ने नहीं देती।
गणपति की छोटी आंखें
गणपति बप्पा की आंखें छोटी है। छोटी आंख का मतलब होता है कि व्यक्ति चीजों के बेहद गंभीरता से लेता है और चिंतनशील भी है। छोटी आंख बताती है कि हर चीज की गहराई से अध्ययन करें और उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाए, ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी धोखा नहीं खाता और फैसला बिल्कुल सही होता है।
गणपति के लंबे कान
भगवान गणेश के कान सूप की तरह बड़े हैं। बड़े कान होना भाग्यशाली और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। पृथ्वी पर सभी जानवरों में सबसे ज्यादा सुनने की क्षमता केवल हाथी में होती है जो सैकड़ों किलोमीटर दूर की छोटी सी छोटी आवाज को भी आसानी से सुन लेते हैं। इतनी सूक्ष्म ध्वनियों को सुनने की क्षमता आज के विज्ञान में मशीनों के अंदर भी नहीं है। बड़े कान चौकन्ना रहने का संकेत भी देते हैं। साथ ही सबकी सुनना और फिर अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर निर्णय लेते हैं। गणेशजी के बड़े कान यह भी शिक्षा देते हैं कि आप वही सुनें जो आपको ज्ञान देता हो, बेकार और बुरी बातों को कान तक पहुंचते ही बाहर कर दें।
गणपति की सूंड
भगवान गणपति की सूंड हमेशा हिलती रहती है। इसका मतलब होता है कि जीवन में हमेशा एक्टिव रहना चाहिए, हमेशा उसे काम करते रहना चाहिए। जो व्यक्ति जीवन में एक्टिव नहीं रहता, सफलता उसे हमेशा देरी से मिलती है। एक्टिव रहने से कभी भी गरीबी और दुखों का सामना नहीं करना पड़ता।
गणपति का पेट
भगवान गणेश का पेट बहुत बड़ा है और यह खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। बड़े पेट का मतलब है कि अच्छी और बुरी बातों का समझें अर्थात उनको सही पचा लें और फिर अपना निर्णय दें। जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह हमेशा अपने निर्णय को सुझबुझ के साथ लेता है। भोजन के साथ सभी बातों को जो पचा लेता है वह हमेशा खुशहाल रहता है।
गणपति का शस्त्र
भगवान के शस्त्र का नाम कुल्हाडी या फरसा है। कुल्हाड़ी से गणपति ने कई राक्षसों का अंत किया है। इससे ना सिर्फ वह राक्षसों का अंत करते थे, बल्कि उनको की भी प्राप्ति भी करवाते थे। हाथों में कुल्हाड़ी दर्शाती है कि वह सभी बंधनों से मुक्त हैं। अगर मनुष्य चाहे तो वह भी ऐसा कर सकता है, वह क्रोध, लालच और बुराइयों को काट सकता है।
हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन चिंतनशाली बुद्धिशाली थे कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। तो जब भी हम उस सर्वव्यापी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिए, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं। यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिए।
– श्रीपाद अवधूत की कलम से।