इससे बड़ा दुर्भाग्य किसी देश का और क्या होगा जिसमें मानवता तार – तार होती अपने आँखों के सामने नजर आती है, और ‘वे चुप हैं ‘ । बांग्लादेश के हिंदुओं को बचाने वाला उनके अपने देश में कोई नहीं है । उनके लिये कोई विपक्ष कोई दल नहीं बल्कि मुस्लिम अत्याचारों को कालीन के नीचे ढकने के ये सब प्रयास मानसिक दिवालियापन के ही प्रतीक होते है।
नौकरियों में विवादास्पद कोटा प्रणाली को लेकर अपनी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा देने पर भी बांग्लादेश में निर्मम हिंसा कायम है । निर्वाचित प्रधानमंत्री शेख हसीना के त्यागपत्र देने और देश छोड़ने के बाद अराजक तत्व हावी हो गए हैं, और कानून व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी हो चुकी है। स्पष्ट है आंदोलन की आड़ में विध्वंसक मुस्लिमों को एक नरेटिव सेट करना था जो किया गया । इस अराजक स्थिति में वहां के अतिवादी जिहादी तत्वों ने हिंदू समाज का बड़े पैमाने पर उत्पीड़न शुरू कर दिया, उन्मादी भीड़ के हमले से बचने के लिए वहां के हिंदू अपना घर छोड़कर पलायन के लिए बाध्य हो रहे हैं। कट्टरपंथी शमशान तक को निशाना बना रहे हैं। विकट परिस्थिति का लाभ उठा कर जिहादियों द्वारा सीमा पार से घुसपैठ का प्रयत्न किया जा सकता है। हिंदुओं पर सितम का आलम यह है कि लोगों को जिंदा जलाया जा रहा है । हिन्दूओ पर समन्वित’ और ‘योजनागत’ रूप से किए जा रहे हमले से सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया जा रहा है ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार खुद को इस्लामी विद्वान बताने वाले अबू नज्म फर्नांडो बिन अल-इस्कंदर ने बांग्लादेश से हिंदुओं को पूरी तरह से मिटा देने की अपील की है। उसने ट्वीट में इस्लामी न्यायशास्त्र का हवाला देते हुए कहा है कि – अहले सुन्ना इस्लामी न्यायशास्त्र की चार में तीन विचारधाराएं कहती हैं कि हिंदुओं के पास केवल दो विकल्प होने चाहिए। पहली तलवार और दूसरा इस्लाम को अपना लें। वही कट्टरपंथी ने आगे जहर उगलते हुए लिखा, ‘हिंदुओं को शुक्रगुजार होना चाहिए कि अभी उनका सामना हनफी से हो रहा है, न कि मलिकी, शैफी या हनबली से।’ ये सभी सुन्नी मुसलमानों में मुस्लिम कानून की चार प्रमुख स्कूल (विचारधारा) हैं। उसने यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे गैर मुस्लिमों से अपमानजनक व्यवहार के साथ मिलना चाहिए ।
इतनी निर्मम टिप्पणी के बाद भारत को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है । बांग्लादेश की वर्तमान परिस्थियों को देखते हुए पूरे विश्व को हिन्दुओं के प्रति समर्पित संगठन की नितांत आवश्यकता है । इतिहास का एक पुरातन पन्ना जरूर एक बार पुनः पलटना चाहिए जब 1923 में नागपुर में हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए थे जहाँ हिन्दुओं को पूरी तरह से अव्यवस्थित और घबराया हुआ महसूस हुआ था । इस घटना ने डा° केशव राव बलीराम हेडगेवार पर गहरा असर डाला और उन्हें हिन्दू समाज को संगठित करने की आवश्यकता के बारे में आश्वस्त किया । इस विचारधारा ने एक ऐसे संगठन की नीव रखी जो आज हिन्दुओं के लिए विश्व का सबसे बड़ा संगठन बनकर पुर्ण समर्पण से कार्य कर रहा है । इसी विचारधारा की आज बांग्लादेश को भी आवश्यकता है । कहने का अर्थ हिन्दुओं ने इस तालिबानी सोच की पीड़ा को कई बार सहा है । केरल में मोपलाओं के द्वारा हिंदुओं का भीषण नरसंहार इसी तालिबानी सोच के कारण हुआ था। जवाबदारी व्यवस्थापकों है जो इस तालिबानी सोच को बढ़ने से पहले ही दबा दे सीएए के विरोध में शाहीन बाग रचा गया । शिव विहार ,सीलमपुर जैसे पचासियों स्थानों पर हिंदुओं के नरसंहार का प्रयास किया गया । अनुमान के अनुसार 25,000 से अधिक हिंदुओं की निर्मम हत्या की गई थी।
कहने का आशय विगत एक दशक में वहां हिंदुओं पर लगभग चार हजार हमले हुए हैं जिनमें सैकड़ों जानें गईं और हजारो हिंदू घायल हुए हैं। वर्ष 1974 की जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में 13.5 प्रतिशत हिंदू थे, लेकिन वर्ष 2021 तक यहां महज 6.5 प्रतिशत हिंदू ही रह गए हैं। जो हिंदू बचे हैं वे भी लगातार जिहादी उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। भला कोई हिंदू ह्दय इस विध्वंस का समर्थन कैसे कर सकता है, फिर वह हृदय विपक्ष का हो या किसी अन्य पार्टी या दल का जिसके विरोध की आवाज तक कहीं सुनाई नहीं दे रही । बांग्लादेश के हिंदुओं की चीख-पुकार जिन शब्दों में कुलबुला रही है क्या वे उन आयतों में उतारी जाएँगी जिसे सत्ता के ज्वलंत पन्नो में कहीं दफना दिया जाता है । भला ऐसा क्यों जहाँ इस्लाम झुण्ड में नजर आता है आप इसे बहुसंख्यक भी सकते हैं वहां शांति सुख चैन के बजाय आतंक अराजकता ही ज्यादा पनपती है ,और फिर एक दिन किसी लेखक के लिखे उपन्यास ‘कत्लगाह’ (बांग्लादेश की कहानी पर केंद्रित ) की तरह वर्तमान भी इतिहास बन जाएगा।
लेखक – आशीष जैन “अग्निधर्मा”