“विजय दिवस” स्वभिमान,आत्मसम्मान!!!

16 दिसम्बर 1971…
“विजय दिवस”
स्वभिमान,आत्मसम्मान!!!
“अभिमान”

किसी भी राष्ट्र के लिए 16 दिसम्बर 1971 जैसी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करना आत्मसम्मान की सर्वोच्च अवस्था होती है और ये भारत राष्ट्र के सिवा किसी के भी पास नही है….भारत वह वीर भूमि है जिसके सपूत अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव रक्तरंजित होने का माद्दा रखते है…और ये आत्मबल हम भारतीयों के पास कहाँ से आता है ये सम्पूर्ण विश्व में अनुसंधान का विषय है…
उसका कारण है
विश्व का कोई भी देश अपने देश को माँ नहीं कहता, क्या हमने कभी सुना है अमेरिका माता,रशिया माता,चीन माता…आदि ..हम भारत के लाल ही भारत शब्द पुर्लिंग है ये जानते हुए भी भारत माता कहते है…क्यों???क्योकि जन्म से ही इसकी माटी में पलकर, भारत माँ के रक्षक बलिदानी पूर्वजो की गाथा सुनकर अपने आंखों से अश्रु बहाते पर रगों में खून खोल जाने का अनुभव करते बड़े हुए है तो कैसे हम अपनी माँ की रक्षा हेतु तन,मन,धन,सर्वस्व समर्पित करने रोक सकते है …क्योकि अपनी माँ की रक्षा करना हमारा स्वभाव है….
और इस रग रग में बसे मातृभूमि की रक्षा के जज्बे की खातिर ही हमने आज लाहौर का सीना चीर दिया था 90,000 दुश्मन जवानों को घुटनों के बल ला दिया था….

पाकिस्तानी जनरल नियाजी की झुकी गर्दन की वह तस्वीर जो विजय होने की पराकाष्ठा को दर्शाती है …
आज भीहमारे खून को और खोला देती है … और ये सारी अभूतपूर्व घटनाएं हमें सीमाओं पर सजग रहने को सदैव चाकचौबंद करती है…

16 दिसम्बर 1971 आज आत्मगौरव के 52 वर्ष पूर्ण हुए । गर्व है हमें की इतिहास के पन्नो में दर्ज ये तारीख हम भारतीयों के इतिहास को सदियों तक गौरवान्वित तक करेगी….
16 दिसम्बर प्रहार दिवस के रूप में मनाने की परंपरा है और इस परम्परा को निरंतर चलाना हम सबकी जवाबदेही है…. समय बदलाव का है और प्रहार के प्रकार बदल गए है… राष्ट्रभक्ति बढ़ी है तो राष्ट्र को तोड़ने वाली शक्तियां वो अंतराष्ट्रीय स्तर तक उतनी ही सक्रिय। हमें भी अपने प्रहार बदलना होंगे… आक्रमण को समझकर प्रहार के नित नए प्रयोग करना होंगे, तभी हम अपने राष्ट्रधर्म को निभा सकेंगे।

विजयदिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई शुभकामना

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