‘राम’ हम धन्य हुयें
वर्षों के अथक प्रयासों से,
प्राणों के अनंत कयासों सें,
तुम आयें मिथक मिटाने कों,
शाश्वत सत्य दिखलाने कों।।1।।
सत्य का सम्बंध छूटे ना,
विश्वास ह्दय का टूटे ना,
तुमने आह्वान करवाया था,
मंदिर संकल्प दिलवाया था।।2।।
राह सुगम फिर भी ना थी,
चाल सरल यू हीं ना थी,
तुमने जो कर को थामा था,
रथ तो सिर्फ बहाना था।।3।।
हुयी शांत नदी सरयु जिस दिन,
हुआ सूर्य विकरालरूप उस दिन,
तुमने भीषण प्रलय मचाया था,
भारत का कलंक मिटाया था।।4।।
लिया प्रण अभी अधूरा था,
जिसे संतो को करना पूरा था,
तुमने मन भीतर रटाया था,
कचहरी मण्डप सजावाया था।।5।।
हुआ निर्णय सब सन्न रह गयें,
अवधपूरी के अंग भंग हो गयें,
तुमने फिर सुदर्शन चलाया था,
गादी पर भक्त बिठलाया था ।।6।।
हुयी सुबह किंतु भोर नयी थीं,
हुआ वही जो चाह कही थीं,
भगवान ने मन मोह लिया,
मंदिर वहीं बनेगा तय किया।।7।।