~अमन व्यास
कहते हैं जो देश शांतिकाल में जितना अधिक स्वेद(पसीना ) बहाता हैं उस देश को युद्धकाल में उतना ही कम रक्त बहाना पड़ता है और आज भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक वही कर रहे हैं। जब इस गर्मी को भीषण कहते हुए हम सब दिनभर कूलर में पानी डालकर घर में रह रहें हैं और यह भी कह रहे हैं कि इस वर्ष गर्मी ने कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया और इसके सामने ए.सी. और कूलर सब बेकाम है उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों स्वयंसेवक प्रांत,क्षेत्र और अखिल भारतीय स्तर पर लगने वाले शिक्षा वर्गों में जिन्हें प्रथम,द्वितीय व तृतीय वर्षं के नाम से जाना जाता है, इनमें कठिन परिश्रम के साथ, अतीव सामान्य व्यवस्थाओं के साथ शिक्षण प्राप्त कर रहे हैं
संघ के इन शिक्षा वर्गों की चर्चा दुनिया भर में होती है। कहते है समाज के लिए जीवनपर्यन्त बिना स्वार्थ कार्य करने का मन भी इन्ही शिक्षा वर्गों में स्वयंसेवको का बनता है और संघ के पास निस्वार्थ भाव से देश के लिए अपना सब कुछ होम करके कार्य करने वाले स्वयंसेवकों की जो बड़ी संख्या है उसमे इन शिक्षा वर्गों की महती भूमिका है। इसी कारण संघ से प्रेरित होकर कई संगठनों ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के लिए ऐसे प्रशिक्षण वर्ग लगाने की योजना भी बनाई, लेकिन कोई भी संगठन इसमें सफल नहीं हो सका, कुछ संगठन और राजनीतिक दल प्रशिक्षण वर्ग लगाते भी हैं, लेकिन वो सर्वसुविधायुक्त होटलों में होते हैं किन्तु संघ शिक्षा वर्ग सबसे अलग है,अद्भुत है और एकमात्र है ।
गर्मी में मई माह में सामान्यतया संघ के शिक्षा वर्ग लगते हैं। प्रथम,द्वितीय व तृतीय नाम से होते हैं। प्रथम वर्ष प्रांत स्तर पर, द्वितीय वर्ष क्षेत्र स्तर ( कुछ प्रान्तों को मिलाकर) पर और तृतीय वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर लगता है। प्रथम व द्वितीय वर्ष २२-२२ दिन के होते हैं और तृतीय वर्ष २५ दिन का होता है । तृतीय वर्ष का आयोजन नागपुर में होता है। मई और जून में जब गर्मी सत्र के अपने उच्च स्तर पर होती है तब इन वर्गों का आयोजन होता है। आप इन वर्गों में स्वयंसेवकों की तपस्या का अनुमान मात्र इस बात से लगा सकते हैं कि वर्तमान में जब हम एक प्रहर के लिए भी मोबाइल फ़ोन से दूर नहीं रह पाते उस समय स्वयंसेवक पूरे वर्ग में बिना मोबाइल फ़ोन के रहते हैं। इन वर्गों में आने-जाने का सम्पूर्ण व्यय स्वयंसेवक अपनी जेब से वहन करते हैं और इतने दिनों तक अपने व्यवसाय अथवा नौकरी का भी किसी प्रकार का कार्य नही करते। कई स्वयंसेवकों को नौकरी से छुट्टी नहीं मिलती तो वह सहर्ष नौकरी छोड़ देते हैं। वर्ग की दिनचर्या भी अत्यधिक व्यस्त होती है। सुबह लगभग ०४:३० बजे से रात्रि १०:०० तक सतत शारीरिक और बौद्धिक के प्रशिक्षण कार्यक्रम होते हैं। स्वयंसेवक किसी गद्दे पर नहीं दरी पर सोते हैं। कूलर नहीं पंखे होते हैं। किन्तु स्वयंसेवक बड़े हर्ष के साथ इन वर्गों में सभी कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं।
इन वर्गों में समरसता जीवंत रूप में दिखती है। कौन किस जाति का है किसी को नहीं पता। सब अपने भाई हैं । हम सब एक ही माँ की सन्तान है इस तरह के व्यवहार के सजीव दर्शन होते है। सहकार,स्वच्छता से लेकर सभी शुभ गुण स्वयंसेवकों में दिखते हैं। आज जब हम किसी के विद्यालय या किसी स्थान पर एक-दो घंटे का कार्यक्रम भी करते हैं तो उसका मालिक व्यय लेता है। ऐसे में आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रथम व द्वितीय वर्ष के आयोजन में २२ दिनों के लिए संघ को भवन निशुल्क उपलब्ध होते हैं और इससे भी बड़ा आश्चर्य कि आज बड़ी संख्या में विद्यालय संचालक अपना भवन संघ को शिक्षा वर्ग के लिए देने को आतुर है क्योंकि संघ को भवन देने से वो भवन और स्वच्छ हो जाता है उसके पेड़ जो सूखने लगे थे स्वयंसेवको के श्रमदान से वे हरे-भरे हो जाते हैं। संघ के विषय में सबका विश्वास बनने लगा है कि संघ हमारे संस्थान को और अच्छा ही करके देगा। संघ की ओर श्रद्धाभाव से देखने वाले लोग यह भी मानते हैं कि इतने सारे देशभक्त इतने दिनों तक देश व धर्म के विषय में चिन्तन करेंगे,प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे, तपस्या करेंगे तो निश्चित ही हमारा भवन पवित्र हो जाएगा और यह मान्यता ठीक भी है।
संघ पर लगे प्रतिबन्ध और कोरोना काल को छोड़ दें तो कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इन शिक्षा वर्गों का आयोजन ही नहीं हुआ हो। प्रतिवर्ष शिक्षा वर्ग आयोजित होते हैं। बड़ी संख्या में स्वयंसेवक प्रशिक्षित होते हैं और फिर जीवन पर्यन्त राष्ट्र कार्य करते हैं। कुछ तो अपना सर्वस्व ही भारत माँ के चरणों में न्योछावर कर देते हैं। कोरोना के कारण सबको लगता था कि जैसे दुनिया भर के हर क्षेत्र का कार्य प्रभावित हुआ वैसे ही संघ का भी हुआ होगा। संघ को कार्य को पूर्ववत करने में बड़े प्रयास करने पड़ेंगे। किन्तु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयंसेवकों की बहुत बड़ी संख्या इन शिक्षा वर्गों में जाने को आतुर है। इसका कारण है कि संघ का कार्य कोरोना में कभी बंद हुआ ही नहीं। मैदान पर शाखाएं बंद हुई तो स्वयंसेवकों ने घर पर शाखा लगाना प्रारम्भ किया। मैदान पर घर का एक व्यक्ति शाखा आता था घर पर पूरा परिवार, संघ परिवार बन गया, पूरे समाज की दृष्टि कोरोनाकाल में स्वयंसेवकों द्वारा की जा रही निस्वार्थ सेवा की ओर गई। वेबिनारों के माध्यम से स्वयंसेवकों का समय-समय पर प्रबोधन किया गया और इसी की फलश्रुति है कि कोरोना के धीमे पड़ते ही संघ का प्रत्यक्ष कार्य पूर्ववत प्रारम्भ हुआ और शाखाओं की संख्या पहले से भी अधिक बढ़ गई है।
संघकार्य सतत् बढ़ रहा है । देश के कोने-कोने में आज संघ की शाखाओं का जाल फैला हुआ है । लाखों कार्यकर्ता अपना सर्वस्व समर्पण करके कार्य में लगे हुए हैं । संघ की तरह कई लोग संगठन बनाना चाहते हैं लेकिन सब असफल रहे, संघ की तरह संगठन बनाने का विचार करने वाले ये लोग संघ की ऊपरी चमक को देखते हैं इसी कारण उस आकर्षण में आ जाते हैं। संघ की इस चमक के नीचे कितने स्वयंसेवकों के त्याग की और तप की आग है यह भी देखना चाहिए। संघ के स्वयंसेवक शांतिकाल में स्वेद बहा रहे हैं ताकि युद्धकाल में देश को लिए कार्य कर सके।