खेड़ीघाट,माँ राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव ,खेड़ीघाट मोरटक्का में आदि शंकराचार्य जी की जयंती पर शंकराचार्य जी की मूर्ति की स्थापना की गई।जिसमे डॉ हेडगेवार समिति के अघ्यक्ष ईश्वर दास जी हिंदुजा ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक गोरेलाल जी, प्रान्त प्रचारक बलिराम जी पटेल ,जिला संघ चालक राजेन्द्र जी साद, प्रान्त शारीरिक प्रमुख कैलाश जी आंवले एवं समिति के सदस्य कमलेश शर्मा एवं उदय सिंह चौहान उपस्थित थे।
अघ्यक्ष ईश्वर दास जी हिंदुजा ने बताया की यह भूमि आदि शंकराचार्य की तपोभूमि है,इसी स्थान पर शंकराचार्य जी का माँ नर्मदा से साक्षरकात हुआ था।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है. इस साल यह जयंती 6 मई दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है. आदि शंकराचार्य का जन्म दक्षिण भारत के केरल राज्य में नंबूदरि ब्राह्मण के घर हुआ था.गुरु शंकराचार्य ने बहुत ही कम उम्र में वेदों में महारत हासिल की
गुरु शंकराचार्य के जीवन से जुड़ी कुछ जरूरी बातें
1.गुरु शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है. यह बचपन से ही बहुत प्रभावशाली बालक थे.
कहते हैं ब्राह्मण दंपति जब काफी सालों तक संतान प्राप्ति का सुख नहीं ले पाई तब उन्होंने भगवान शंकर की आराधना की. उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उन्हें दर्शन दिए और एक वरदान मांगने को कहा. तब ब्राह्मण दंपति ने शंकर से संतान सुख की प्राप्ति का वरदान मांगा. साथ ही संतान में दीर्घायु प्रसिद्धि आदि गुण हो, ये इच्छा भी प्रकट की. तब शंकर भगवान ने कहा कि तुम्हें दोनों में से एक चीज प्राप्त हो सकती है या तो दीर्घायु या फिर सर्वज्ञ. यदि पुत्र दीर्घायु होगा तो सर्वज्ञ नहीं होगा और यदि वह सर्वज्ञ होगा तो उसकी दीर्घायु नहीं होगी. तब दंपति ने सर्वज्ञ संतान का वर मांगा. भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण दंपति के संतान पैदा हुई. दंपत्ति ने अपने पुत्र का नाम शंकर रखा. जब शंकर मात्र 3 वर्ष के थे तब उनका पिता की मृत्यु हो गई. इस उम्र में शंकराचार्य ने मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था.2.गुरु शंकराचार्य ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था.
3.गुरु शंकराचार्य ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में 100 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी.
4.गुरु शंकराचार्य ने अपनी मां की आज्ञा पाकर वैराग्य धारण कर लिया था.
5.गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को प्रसारित और प्रचारित करने के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की, जिसे वर्तमान में शंकराचार्य पीठ के रूप में जाना जाता है.
गुरु शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की अवस्था में केदारनाथ में समाधि ले ली.