चटगांव की जलालाबाद पहाड़ी पर स्वतंत्रता के लिए महासंग्राम २२ अप्रेल १९३०

महान क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन दा

चटगांव, पूर्वी बंगाल (अब बंग्लादेश) का महत्वपूर्ण नगर रहा था। महान क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन दा ने चटगांव में युवाओं के मध्य राष्ट्रीय चेतना की लहर चेताई थी।चटगांव के असामाजिक तत्व अंग्रेज सरकार के साथ हिंदुओ पर अत्याचार करते थे।मास्टर सूर्यसेन ने चटगांव के युवाओं को स्वामी विवेकानंद के उपदेशों को बताकर, उनको शस्त्र प्रशिक्षण देकर ‘इंडियन रिपब्लिक आर्मी’ संस्था का गठन किया। सैकड़ों युवक इंडियन रिपब्लिक आर्मी के सदस्य बने। ‘स्व’ के आधार पर ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का संकल्प लिया।
संकल्प को पूरा करने के लिए शस्त्रों की आवश्यकता थी तो १८ अप्रेल १९३० मास्टर सूर्यसेन दा के नेतृत्व में चटगांव के सेना के और पुलिस के शस्त्रागार पर हमला कर शस्त्रागारों को लूट लिया। चटगांव पर तिरंगा ध्वज फहरा कर अधिपत्य किया।


२२अप्रेल १९३० को अंग्रेजी शासन ने चटगांव की व्यवस्था ठीक करने के लिए सेना के दो हजार सैनिकों को शस्त्रों से लैस चटगांव की ओर भेजा। चटगांव के पास जलालाबाद की पहाड़ी पर अंग्रेजी सेना का क्रान्ति – सेना का सामना हुआ। इंडियन रिपब्लिक आर्मी के ५० क्रान्ति सैनिकों ने जलालाबाद की पहाड़ी पर दो हजार सैनिकों का सामना किया। आमने सामने का घनघोर युद्ध हुआ। युद्ध मे लगभग १६० ब्रिटिश सैनिक मारे गए। आर्मी के क्रान्ति सैनिक जिसमे १३ वर्षीय हरिगोपाल बल ‘टेगरा’, निर्मल लाला, त्रिपुर सेन,विधुभूषण भट्टाचार्य, नरेश रे,शशांक दत्त,मधुसूदन दत्त,पुलिन विकास घोष, जितेंद्रराय गुप्ता,और मणिलाल कानूनगो आदि ने वीरतापूर्वक युद्ध कर वीरगति को प्राप्त किया था।कई क्रान्तिकारी पकड़े गए और उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया। कइयों को आजीवन कारावास के लिए जेल भेजा गया।


भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में चटगांव का जलालाबाद पहाड़ी का युद्ध बहुत महत्वपूर्ण रहा था।
बलिदानियों को नमन।
दुर्भाग्य से पूर्वी बंगाल के चटगांव कस क्षेत्र हिन्दू बहुल होने के बाद भी ,विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान में चला गया।हमारे तत्कालीन नेतृत्व ने सत्ता के भागदौड़ के कारण चटगांव और दूसरे अन्य क्षेत्रों की ओर कोई घ्यान नही दिया।और वह क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया।
आने वाली पीढ़ी हमसे प्रश्न करेगी कि, क्या हमारे क्रान्तिकारियों ने अपना बलिदान पाकिस्तान के निर्माण के लिए किया था?
बलिदानियों को नमन।
लेखक:-अभय मराठे जी (उज्जैन)

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