अश्विनी कुमार चौबे
भारत की इस वीर, पुण्य व प्रतापी भूमि पर 25 दिसंबर के दिन का ऐतिहासिक महत्व है। इस दिन एक ओर जहां भारत को विश्व के शैक्षिक क्षितिज पर प्रतिष्ठित करने वाले महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी, वहीं दूसरी ओर भारत के राजनीतिक कौशलता एवं लोकतंत्र की पवित्रता से विश्व को परिचित कराने वाले पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती है। भारत के इन दोनों महान सपूतों को अपनी आदरांजलि अर्पित करते हुए हम यह कह सकते हैं कि इन विद्वान् द्वय ने भारत की वैचारिक समृद्धि, सांस्कृतिक विविधता को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने का कार्य किया है। हम यदि अटल जी के जीवन, उनके विचार, उनके आदर्शों एवं मूल्यों से कुछ भी सीखने का प्रयास करेंगे तो वे हमें सदैव अटल रहना ही सिखाती हैं। स्वतंत्रता के पश्चात इक्कीसवीं सदी के सुरक्षित, सक्षम एवं सुदृढ़ भारत की नींव रखने वाले यह अटल बिहारी वाजपेयी जी ही थे। राष्ट्रहित एवं राष्ट्र प्रथम के मंत्र को अपने जीवन का ध्येय बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए देश से अलग कुछ भी महत्वहीन था।
काल के कपाल पर लिखने का बल भी अटल जी के पास था और कौशल भी अटल जी के ही पास था। यह सत्य भी है एवं तथ्य भी है कि अटल जी ने लीक पर चलने की परम्परा को सिरे से नकार कर सामाजिक और राजनीतिक जीवन में शुचिता के नए उच्च मापदंड का निर्माण किया। उनके बोले गए एक-एक शब्द सीधे आम जनमानस के ह्रदय में उतर जाते थे। अटल जी के बारे में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि अटल जी को कितना कहना है, कितना अनकहा रखना है, कहां मौन रहना है, जैसे विषयों में महारथ हासिल थी। किसी ने सही ही लिखा है कि ‘कौन सी बात कहां कही जाती है, यह सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है।’ इस लाइन को सही मायनों में चरितार्थ करने का कार्य अटल जी ने किया था। अटल जी कहते थे कि, “हम केवल अपने लिए न जीएं, औरों के लिए भी जीएं… हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता. किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी।” राष्ट्र के प्रति सार्थक चिंतन मनन करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी भारत के विजय एवं विकास के स्वर थे। वे एक ऐसे मनीषी थे, जिन्हें भारत की जनता ने पांच दशक तक अपने हित की राजनीति करने के लिए चुना था। देश के समग्र विकास के प्रति सतत प्रयासरत रहने वाले अटल जी की दृष्टि में भारत का सच्चे अर्थों में विकास तभी संभव था जब यहां के प्रत्येक नागरिक भूख, भय, निरक्षरता और अभाव के भाव से मुक्त होकर अपना जीवन जिए।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के आदर्शों का अनुसरण करने वाले अटल जी ने अनेकों बार पार्टी लाइन से ऊपर उठकर राष्ट्र के जरूरी विषयों पर हस्तक्षेप किया और देखते ही देखते अटलजी की छवि एक स्टेट्समैन की हो गई, उन्होंने अपने सिद्धातों व राजनीतिक आचार-व्यवहार से सबको प्रभावित किया। अटल जी एक ऐसे नेता माने जाते थे, जो किसी भी विवाद को संवाद की ओर लेकर जाते थे। उनमें संभावनाओं की तलाश करते थे और यही कारण है कि अटल जी आज भी सभी पार्टी के कार्यकर्ताओं के मन-मस्तिष्क में ज्ञानस्वरूप बनकर स्थापित हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जहां स्वतंत्रता के पश्चात एक राजनीतिक पार्टी का एकछत्र राज था, उस दल के तिलिस्म को ध्वस्त कर भारतीय नागरिकों को राजनीतिक विकल्प प्रदान किया, जब सम्पूर्ण देश में कांग्रेस का वर्चस्व था तब जनसंघ जैसे नए दल और उस दल का झंडा थामे युवा अटल, दोनों के लिए रास्ते आसान नहीं थे। 1957 में जब अटल जी लोकसभा के लिए चुने गए, तब संसद में जनसंघ संख्याबल के आधार पर कांग्रेस के समक्ष चुनौती नहीं दे पा रही थी, लेकिन अटल जी ने जनसंघ को वैचारिक रूप से इतना मजबूत बना दिया कि संख्या बल मात्र एक शब्द बन कर रह गया। उनके भाषण, उनके विचार कांग्रेसी सत्ता की पेशानी पर बल ला देते थे। यहां यह जिक्र करना अति आवश्यक है कि अटल जी का एक लम्बा राजनीतिक समय विपक्षी नेता के रूप में व्यतीत हुआ है, लेकिन हमेशा वे सरकार की नीतियों उसकी कार्यप्रणालियों को लेकर विरोध ही करते रहे ऐसा नहीं था।
पाकिस्तान से युद्ध के दौरान अटल जी ने अपना विरोध किनारे रख दिया। उन्होंने सरकार को अपना समर्थन दिया। राजनीति की जगह उन्होंने राष्ट्रनीति को महत्त्व दिया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हमें अटल जी से जुड़े मिल जाएंगे। क्या आज हम देशहित से जुड़े विषयों पर प्रमुख विपक्षी दलों से यह उम्मीद कर सकते हैं कि वे सरकार के समर्थन में एक भी शब्द बोल सकेंगे? दुर्भाग्य से यह उम्मीद बेईमानी होगी। अटल जी को भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता रहा है। इसके पीछे यूं तो अनेकों उदाहरण हैं स्वयं प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु अटलजी जी में देश का राजनीतिक भविष्य देखते थे, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, श्री चन्द्रशेखर, लोहिया जी हर कोई उनके विचारों गंभीरता से सुनता था। वह संसद में बोलने के लिए खड़े होते थे तो सत्ता पक्ष हो अथवा विपक्ष सभी उनके एक-एक शब्द को सुनने व समझने के लिए आतुर रहते थे। प्रधानमंत्री रहते हुए देश को परमाणु सम्पन्न बनाने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो अथवा स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, शिक्षा और एम्स को विस्तार देना हो अथवा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दृढ़ करना अटलजी जी नए भारत के शिल्पी थे, सुशासन के प्रतीक थे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश अटलजी व महामना मालवीय जी के स्वप्न को साकार करने की दिशा में सार्थक कदम बढ़ा रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव के काल में हमारा कर्तव्य है कि देश के लिए खुद को खपाने वाले हमारे प्रेरणास्रोत श्री अटल जी के विचारों को जन-जन से जोड़े तथा उनके अभाव से मुक्त भारत के संकल्प को सिद्दी की तरफ ले जाएं। हम सभी मिलकर प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में एक सशक्त भारत, नए भारत, आत्मनिर्भर भारत के लिए अपना सहयोग दें।
(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्यमंत्री हैं)